संकल्प और अध्यवसाय

 

संकल्प

 

    संकल्प : सम्पन्न कर देने की ओर मुड़ी हुई चेतना की शक्ति

 

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    अध्यवसायी संकल्प सभी बाधाओं पर विजय पाता है ।

 

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    तुम्हारी प्रकृति में जो नहीं है उसे पाने के लिए, जिसे तुम अभी तक नहीं जानते उसे जानने के लिए, जिस काम को तुम अभी तक नहीं कर सकते उसे कर सकने के लिए तुम्हारे अन्दर अटल संकल्प होना चाहिये ।

 

    तुम्हें व्यक्तिगत कामना के अभाव से आने वाले प्रकाश और शान्ति में निरन्तर प्रगति करनी चाहिये ।

 

    अगर तुम्हारे अन्दर दृढ़ संकल्प है तो बस उसे ठीक से दिशा देनी होगी; अगर तुम्हारे अन्दर संकल्प नहीं है तो पहले अपने अन्दर संकल्प का निर्माण करना होगा जो हमेशा बहुत समय लेता है और कभी-कभी कठिन भी होता है ।

२२ मार्च, १९३४

 

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    हम सबसे अधिक सुन्दर विचारों के द्वारा भी प्रगति नहीं कर सकते अगर हमारे अन्दर यह निरन्तर संकल्प न हो कि वे विचार अधिक अच्छे अनुभवों, अधिक यथार्थ संवेदनाओं और अधिक अच्छी क्रियाओं के द्वारा हमारे अन्दर अभिव्यक्त हों ।

१८ नवम्बर, १९५१

 

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मेरी निम्न प्रकृति वही मूर्खतापूर्ण चीजें करती चली जा रही है । केवल आप ही उसे बदल सकती हैं । 'आपकी' क्या शर्तें हें ?

 

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    १. पूरा-पूरा विश्वास होना चाहिये कि तुम बदल सकते हो ।

    २. निम्न प्रकृति के बहानों को अस्वीकार करते हुए बदलने का संकल्प ।

    ३. हर एक पतन के बावजूद संकल्प पर डटे रहना ।

    ४. तुम्हें जो सहायता प्राप्त होती है उस पर अविचल श्रद्धा ।

७ अप्रैल, १९६९

 

अग्नि

 

    सच्ची 'अग्नि' हमेशा गभीर शान्ति में जलती है; यह सर्व-विजेता संकल्प की अग्नि है ।

 

    पूर्ण समचित्तता में इसे अपने अन्दर बढ़ने दो ।

 

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    अग्नि : पवित्रता की लौ जिसे सभी अदृश्य लोकों के साथ सम्पर्क करने के लिए मार्गदर्शक होना चाहिये ।

 

निश्चय

 

     निश्चय : इसके विकास को कोई नहीं रोक सकता ।

 

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    हमें अपने-आपको स्थिर निश्चय और अचल भरोसे में समेटना चाहिये ।

९ नवम्बर, १९५४

 

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    अपने निश्चय में दृढ़ रहो सब कुछ ठीक हो जायेगा ।

 

    प्रेम ।

२८ अक्तूबर १९६६

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    अपने निश्चय को सम्पूर्ण और निरन्तर बनाये रखो और धीरे-धीरे तुम्हारा भविष्य तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा ।

प्रेम और आशीर्वाद सहित ।

९ फरवरी, १९६९

 

दृढ़ निश्चय

 

    सब आदतों से छुटकारा पाना कठिन है । उनका स्थिर निश्चय के साथ सामना करना चाहिये ।

११ जुलाई, १९५४

 

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   तुम्हें कोई चीज इसलिए नहीं छोड़ देनी चाहिये कि वह कठिन है, इसके विपरीत, चीज जितनी ज्यादा कठिन हो उसमें सफलता पाने के लिए मनुष्य को उतना ही ज्यादा कृतनिश्चय होना चाहिये ।

१ जुलाई, १९५५

 

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    दृढ़ निश्चय जानता है कि वह क्या चाहता है और उसे कर लेता है ।

 

स्थिर प्रयास

 

    महत्त्वाकांक्षी योजनाएं साधारणत: धराशायी हो जाती हैं । धीरे-धीरे और दृढ़ता के साथ चलना अधिक अच्छा है ।

 

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स्थिर और धैर्यवान् बनो-सब कुछ ठीक हो जायेगा ।

२२ मई, १९३४

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    तुम्हें अपनी अभीप्सा को स्थायी रखना और अपने प्रयास में धीरज धरना चाहिये, तब सफलता निश्चित होगी ।

८ मई, १९३७

 

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    स्थिर प्रयास हमेशा महान् परिणाम लाते हैं ।

२५ अप्रैल, १९५४

 

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    हम अपने प्रयास में स्थिर और अपने निश्चय में शान्त और दृढ़ रहें तो निश्चय ही लक्ष्य तक जा पहुंचेंगे ।

२६ अक्तूबर १९५४

 

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    ठीक दिशा में किये गये प्रयास सभी विध्न-बाधाओं को तोड़ देते हैं । अपनी अभीप्सा में स्थिर रहो तो वह निश्चय ही स्वीकृत होगी ।

 

    प्रेम ।

अक्तुबर, १९६६

 

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    कोई प्रयास बेकार नहीं जाता, उत्तर हमेशा मिलता है भले वह दिखायी न दे ।

७ दिसम्बर, १९६१

 

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    व्यक्तिगत प्रयास अपरिहार्य है, उसके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता । जब व्यक्तिगत प्रयास सच्चा हो तो सहायता हमेशा मिलती है ।

१५ अक्तूबर १९७२

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    प्रगति करने और भयंकर आदतों से छुटकारा पाने के सभी सच्चे प्रयासों को भागवत कृपा की सक्रिय सहायता द्वारा उत्तर और सहारा मिलता है-लेकिन प्रयास सतत रहना चाहिये और अभीप्सा सच्ची ।

 

आग्रह

 

    चिन्ता न करो, अपनी अभीप्सा में धर्मशील और आग्रही रहो ।

 

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    अपनी अभीप्सा में आग्रही रहो और वह पूरी होगी ।

१२ सितम्बर, १९५४

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    अपनी अभीप्सा और अपने प्रयास में आग्रही रहो तो तुम सफल होगे ।

१२ जून, १९७१

 

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    निरन्तरता : यह जानना कि अपने प्रयास में कैसे आग्रही रहा जाये ।

 

 

अध्यवसाय

 

     अध्यवसाय : बिलकुल अन्त तक जाने का निश्चय ।

 

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     अध्यवसाय है कर्म में धैर्य ।

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    अध्यवसाय सभी बाधाओं को तोड़ देता है ।

 

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    डटे रहो तो सभी विध्न-बाधाओं पर विजय पाओगे ।

 

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    डटे रहो सफलता का यह सबसे निश्चित मार्ग है । जिसे तुम पिछले वर्ष अपने अन्दर नहीं पा सके उसे इस वर्ष पा लोगे ।

 

    मेरे प्रेम और आशीर्वाद के साथ ।

 

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    तुम जो आज नहीं कर पा रहे उसे कल चरितार्थ कर लोगे । डटे रहो और तुम्हारी विजय होगी ।

 

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    अपनी अभीप्सा और अपने प्रयास में डटे रहो, अपने-आपको बाधाओं के कारण हतोत्साह न होने दो । शुरू में हमेशा ऐसा होता ही है लेकिन अगर तुम उनकी ओर ध्यान दिये बिना युद्ध जारी रखो तो एक दिन

 

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आयेगा जब बाधाएं मार्ग छोड़ देंगी और कठिनाइयां गायब हो जायेंगी । मेरी सहायता हमेशा तुम्हारे साथ है लेकिन तुम्हें उसका उपयोग करना और स्वयं अपने साधनों की अपेक्षा उस पर निर्भर रहना सीखना चाहिये ।

२१ मई, १९५६

 

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    अध्यवसाय द्वारा ही आदमी कठिनाइयों को जीत सकता है, उनसे भाग कर नहीं । जो डटा रहे उसका जीतना निश्चित है । विजय सबसे अधिक सहनशील को प्राप्त होती है । हमेशा अपना अच्छे-से-अच्छा करो और परिणामों को भगवान् देख लेंगे ।

१९६१

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    हठ क्या है ? हम उसका अच्छे-से-अच्छा उपयोग कर सकते हैं ?

 

यह एक महान् सद्‌गुण अध्यवसाय का गलत उपयोग है ।

 

    उसका सदुपयोग करो, और वह ठीक रहेगा ।

 

    प्रगति की ओर अपने प्रयास में हठी रहो तो तुम्हारा हठ उपयोगी हो जायेगा ।

२१ मई, १९७१

 

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    मैं तुमसे पहले ही कह चुकी हूं कि मेरी सहायता तुम्हारे साथ है और वह बनी रहेगी । तुम निश्चय ही लक्ष्य तक जा पहुंचोगे परन्तु तुम्हें बहुत अध्यवसायी होना चाहिये । परम सत्य के साथ निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना आसान नहीं है और यह समय की और बहुत सचाई और निष्कपटता की मांग करता है । लेकिन तुम मेरे पथ-प्रदर्शन और मेरी शक्ति पर विश्वास कर सकते हो ।

 

    प्रेम और आशीर्वाद सहित ।

१९७१

 

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